Ayatul Kursi: A Comprehensive Explanation
Introduction to Ayatul Kursi The word ‘Ayatul Kursi’ literally means “The Verse of the Throne.” This is literally one of the most momentous and esteemed versus of the Quran. Recited by the entire Muslim community in the world, it holds a special place in their hearts. The very verse reveals the greatness and majesty of Allah or God in Islam. It gives an insight into the nature and qualities of God.

परिचय (Introduction –शब्द)
इस्लामिक परंपरा में कुछ विशेष पंक्तियाँ अत्यधिक महत्व रखती हैं जो आत्मा को शांति देती हैं और हृदय को सुकून पहुँचाती हैं। इन्हीं में से एक है वह प्रसिद्ध पंक्ति जिसे ‘कुर्सी’ कहा जाता है। यह कुरआन की सबसे शक्तिशाली पंक्तियों में से एक मानी जाती है और कई मुस्लिम इसे रोज़ाना की दिनचर्या में शामिल करते हैं।
यह लेख इस पंक्ति के अर्थ, इसके आध्यात्मिक लाभ, और इसे नियमित रूप से पढ़ने की वजहों को विस्तार से समझाएगा। यदि आप इस्लाम के रहस्य और कुरआन की शक्ति को गहराई से जानना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए है।
The Verse in Arabic:
“اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ الْحَيُّ الْقَيُّومُ ۚ لَا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ ۚ لَّهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ مَن ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِندَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ ۚ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِّنْ عِلْمِهِ إِلَّا بِمَا شَاءَ ۚ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ ۖ وَلَا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا ۚ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ”
Transliteration:
“अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवा, अल-हय्य-उल कय्यूम ला ता’खुदुहु सिनातुन वा ला नाव्म, लहु मा फी अस-समावती वा मा फिल-अर्द मन धल्लधि यशफाउ ‘इंदाहु इल्ला बि-इद्निहि य’लामु मा बैना अयदिहिम वा मा खल्फाहम, वा ला युहितुना बी शायिन मिन ‘इल्मिही इल्ला बीमा शा’आ वसी’आ कुरसियुहु अस-समावती वाल-अर्द, वा ला यौदुहु हिफदुहुमा, वा हुवा अल-‘अली-उल-‘अजीम।”
Interpretation and Explanation:
अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवा” (اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ):
इस वाक्यांश का अर्थ है “अल्लाह, उसके अलावा कोई देवता नहीं है।” यह इस्लाम में पूर्ण एकेश्वरवाद की पुष्टि करता है, यह घोषणा करते हुए कि अल्लाह के अलावा कोई भगवान नहीं है। यह अवधारणा इस पर आधारित है इस्लामी आस्था का मूल.
“अल-हय-उल कय्यूम” (الْحَيُّ الْقَيُّوم):
यह वाक्यांश इस बात पर जोर देता है कि अल्लाह “जीवित” और “सबका पालनहार” है। वह आत्मनिर्भर, शाश्वत और स्वतंत्र है, जबकि ब्रह्मांड में सब कुछ अपने अस्तित्व और भरण-पोषण के लिए उस पर निर्भर करता है।
“ला तख़ुदुहु सिनातुन वा ला नवम” (لَا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ):
यह खंडaron एIBOutlet करता है कि अल्लाह को नींद का अनुभव होना और नींद लेना माना जाता है। इंसानों के विपरीत, अल्लाह हमेशा जागृत और जागरूक रहता है, हर समय ब्रह्मांड को बनाए रखता है।
“लहु मा फाई अस-समावती वा मा फिल-आर्ड” :
यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि स्वर्ग और पृथ्वी में सब कु
इस्लाम में कुर्सी की आयत का स्थान
- क्यों इसे विशेष माना गया है
- पैग़म्बर मुहम्मद (ﷺ) की हदीसों में इसका उल्लेख
- यह किस अध्याय में स्थित है
शब्दार्थ और सरल अर्थ
- मूल अरबी में
- हिंदी में सरल भावार्थ
- इसमें प्रयुक्त प्रमुख नाम और विशेषणों की व्याख्या
कुर्सी की आयत पढ़ने के लाभ (H2)
1. सुरक्षा के लिए
- रात में पढ़ना
- घर और परिवार की हिफ़ाज़त
2. मानसिक शांति और आत्मिक शक्ति
- चिंता और भय से राहत
- ध्यान और इबादत में सहायता
3. अल्लाह से निकटता
- रोज़ पढ़ने से रूहानी संबंध मज़बूत होता है
- तवक्कुल (भरोसा) की भावना को बढ़ावा
कब और कैसे पढ़ें
- नमाज़ के बाद
- सोने से पहले
- घर से निकलते समय
- सफर में
दैनिक जीवन में शामिल करने के तरीके (H2)
- मोबाइल पर नोटिफिकेशन सेट करें
- घर की दीवारों पर पोस्टर या फ्रेम
- बच्चों को याद कराना और सिखाना
ध्यान देने योग्य बातें (H2)
- पढ़ने से पहले पाकी (वुज़ू) की स्थिति
- दिल की एकाग्रता और भावना से पढ़ना
- सिर्फ़ शब्द नहीं, अर्थ को भी समझें
आध्यात्मिक अनुभव और प्रेरणाएँ (H2)
- लोगों की कहानियाँ जिन्होंने इसे अपनाया
- कैसे यह जीवन में परिवर्तन ला सकती है
- अल्लाह की रहमत को महसूस करना
निष्कर्ष Conclusion
कुर्सी की यह विशेष पंक्ति केवल एक धार्मिक पाठ नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है। इसे समझना और अपनाना आत्मा को शुद्ध करता है, मन को स्थिरता देता है और अल्लाह की निकटता दिलाता है। चाहे आप इसे पहली बार पढ़ रहे हों या रोज़ की आदत बना चुके हों, इसका प्रभाव हर बार उतना ही गहरा होता है।

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