SURAH AHZAB AYAT 33 IN ARABIC TEXT
وَقَرۡنَ فِي بُيُوتِكُنَّ وَلَا تَبَرَّجۡنَ تَبَرُّجَ ٱلۡجَٰهِلِيَّةِ ٱلۡأُولَىٰۖ وَأَقِمۡنَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتِينَ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَطِعۡنَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓۚ إِنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُذۡهِبَ عَنكُمُ ٱلرِّجۡسَ أَهۡلَ ٱلۡبَيۡتِ وَيُطَهِّرَكُمۡ تَطۡهِيرٗا
Translation:
” और तुम अपने घरों में रहो और ताज्जुब की बात न करो, जैसा कि पूराने जाहिली जमाने में होता था, और नमाज पढ़ो और जकात दो और अल्लाह और उसके रसूल की तारीक़े पर चलो। क्योंकि अल्लाह तुम्हें अपने घर के लोगों की बुराई को हटाना चाहता है और तुम्हें पूरी तरह शुद्ध करना चाहता है।
इस आयत में अल्लाह ने मुस्लिम महिलाओं को कुछ निर्देश दिए हैं। उन्हें अपने घरों में रहने का हुक्म दिया गया है और यहां तक कि उन्हें ताज्जुब की बात न कहने की सलाह भी दी गई है। यहाँ ‘ताज्जुब’ का अर्थ है बाहर के लोगों के सामने खुलकर अपना अलंकरण दिखाना। उन्हें नमाज की पाबंदी, जकात का देना, अल्लाह और उसके रसूल की तारीक़े पर चलने की सलाह दी गई है। इससे स्पष्ट होता है कि यह आयत महिलाओं को अपने घर के अंदरी और बाहरी माहौल का अंतर बताती है, साथ ही उन्हें धार्मिक जिम्मेदारियों का पालन करने का आह्वान किया जाता है।
SURAH AHZAB AYAT 34 IN ARABIC TEXT
وَٱذۡكُرۡنَ مَا يُتۡلَىٰ فِي بُيُوتِكُنَّ مِنۡ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ وَٱلۡحِكۡمَةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ لَطِيفًا خَبِيرًا
Translation :
“And remind that which is read in your houses of Ayats Allah and the wisdom. Indeed Allah is ever, for everything Knower Witt.”
Explanation:
यह आयत अल्लाह की सिफारिश कर रही है कि मुस्लिम महिलाएं अपने घरों में उन आयतों और हिकमत की याद करें जो उन्हें पढ़ी जाती हैं। यह उन महिलाओं को सुझाव देता है कि वे अपने धार्मिक अध्ययन और समय को बढ़ाएं, ताकि वे अपने आत्मा को उत्कृष्टता की ओर ले जा सकें। इसके साथ ही यह आयत हमें यह बताती है कि अल्लाह हमें अपनी कृपा और ज्ञान से संबोधित करता है और हमें समस्त चीजों के बारे में अच्छी तरह से जानता है।
SURAH AHZAB AYAT 35 IN ARABIC TEXT
إِنَّ ٱلۡمُسۡلِمِينَ وَٱلۡمُسۡلِمَٰتِ وَٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ وَٱلۡقَٰنِتِينَ وَٱلۡقَٰنِتَٰتِ وَٱلصَّـٰدِقِينَ وَٱلصَّـٰدِقَٰتِ وَٱلصَّـٰبِرِينَ وَٱلصَّـٰبِرَٰتِ وَٱلۡخَٰشِعِينَ وَٱلۡخَٰشِعَٰتِ وَٱلۡمُتَصَدِّقِينَ وَٱلۡمُتَصَدِّقَٰتِ وَٱلصَّـٰٓئِمِينَ وَٱلصَّـٰٓئِمَٰتِ وَٱلۡحَٰفِظِينَ فُرُوجَهُمۡ وَٱلۡحَٰفِظَٰتِ وَٱلذَّـٰكِرِينَ ٱللَّهَ كَثِيرٗا وَٱلذَّـٰكِرَٰتِ أَعَدَّ ٱللَّهُ لَهُم مَّغۡفِرَةٗ وَأَجۡرًا عَظِيمٗا
Translation :
“बेशक, मुसलमान औरतें और पुरुष, ईमानवाली औरतें और पुरुष, नमाज़ अदा करने वाली औरतें और पुरुष, सच्चे लोग, सच्ची औरतें, सब्र करने वाले पुरुष और औरतें, खुदा को याद करने वाले पुरुष और औरतें, रोज़ा रखने वाले पुरुष और औरतें, अपनी योनि की रक्षा करने वाले पुरुष और औरतें और खुदा की याद में जितनी ज्यादा सजीवता के साथ रहते हैं, खुदा ने उनके लिए कफ़रत और महान बदला तैयार किया है।”
Explanation:
यह आयत बताती है कि मुसलमान पुरुष औरतें, मुसलमान औरतें, ईमानवाले पुरुष औरतें, नमाज़ अदा करने वाले पुरुष औरतें, सच्चे लोग, सच्ची औरतें, सब्र करने वाले पुरुष और औरतें, खुदा को याद करने वाले पुरुष और औरतें, रोज़ा रखने वाले पुरुष और औरतें, अपनी योनि की रक्षा करने वाले पुरुष और औरतें और खुदा की याद में जितनी ज्यादा सजीवता के साथ रहते हैं, उनके लिए खुदा ने बड़ी बड़ी माफ़ी और बड़ा बदला तैयार किया है।
SURAH AHZAB AYAT 36 IN ARABIC TEXT
और मोमिन पुरूष और न किसी मोमिन औरत के पास उस समय जबकि अल्लाह और उसके रसूल ने कोई फ़ैसला किया उनके अपने फ़ैसले में ख़ुदा और उसके रसूलों की मनाही या वास्तविकता का विकल्प नहीं होता। और जो अल्लाह और उसके रसूल की तरीक़े पर असर करता है, वह बिल्कुल साफ़ गुमराही में।
यह आयत बताती है कि किसी मुमिन पुरुष या मुमिन औरत को उस वक्त, जबकि अल्लाह और उनके रसूलों ने कोई फैसला कर लिया हो, अपने फैसले में ख़ुदा और उनके रसूलों की मनाही या वास्तविकता का विकल्प धारण करने का कारण नहीं होता। और जो अल्लाह और उसके रसूलों के आदेशों को तोड़ दे, तो वह सीधे रास्ते से भटक जाता है और सही राह से हट जाता है।
SURAH AHZAB AYAT 37 IN ARABIC TEXT
وَإِذۡ تَقُولُ لِلَّذِيٓ أَنۡعَمَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِ وَأَنۡعَمۡتَ عَلَيۡهِ أَمۡسِكۡ عَلَيۡكَ زَوۡجَكَ وَٱتَّقِ ٱللَّهَ وَتُخۡفِي فِي نَفۡسِكَ مَا ٱللَّهُ مُبۡدِيهِ وَتَخۡشَى ٱلنَّاسَ وَٱللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخۡشَىٰهُۖ فَلَمَّا قَضَىٰ زَيۡدٞ مِّنۡهَا وَطَرٗا زَوَّجۡنَٰكَهَا لِكَيۡ لَا يَكُونَ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ حَرَجٞ فِيٓ أَزۡوَٰجِ أَدۡعِيَآئِهِمۡ إِذَا قَضَوۡاْ مِنۡهُنَّ وَطَرٗاۚ وَكَانَ أَمۡرُ ٱللَّهِ مَفۡعُولٗا
Translation in Hindi:
और जब तुमने उसके साथ जिस पर अल्लाह ने अपनी अनुग्रह की और तुमने भी अपनी अनुग्रह कहा, अपनी पत्नी को अपने पास रखो और अल्लाह का डरो और जो अल्लाह के बाहर है उसे अपने दिल में छुपाओ, और लोगों से डरो, और अल्लाह के डरने का अधिकार है, तब जब ज़ैद उससे तलाक दे दिया और उसको आवश्यकता नहीं रही तो हमने उसे तुमसे शादी कर दी ताकि मोमिनों के लिए किसी भी विशेष तकलीफ़ का न हो जब वे अपनी गोद लेते हैं और यह अल्लाह की तकमील है
Explanation:
इस आयत में बताया गया है कि प्रवद्ध योधा और अल्लाह की अनुग्रह में आने वाले व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ रहने का आदेश दिया गया। इसके अलावा, यह भी कहा गया है कि अल्लाह के डर से ज़्यादा डरना चाहिए, और वह सब कुछ जानता है। फिर जब वह पति अपनी पत्नी को तलाक देता है और उसको उससे कोई ज़रुरत नहीं रहती, तो वह और उसकी पत्नी की शादी कर दी जाती है ताकि किसी भी मुसलमान को इससे कोई तकलीफ़ न हो।
SURAH AHZAB AYAT 38 IN ARABIC TEXT
मَّا كَانَ عَلَى ٱلنَّبِيِّ مِنۡ حَرَجٖ فِيمَا فَرَضَ ٱللَّهُ لَهُۥۖ سُنَّةَ ٱللَّهِ فِي ٱلَّذِينَ خَلَوۡاْ مِن قَبۡلُۚ وَكَانَ أَمۡرُ ٱللَّهِ قَدَرٗا مَّقۡدُورًا
अनुवाद:
“अल्लाह ने जो कुछ उसके लिए अनिवार्य किया है, उसमें पैगंबर पर कोई दोष नहीं था। [यह] उन [पैगंबरों] के साथ अल्लाह का स्थापित तरीका था जो पहले भी गुजर चुके हैं। और अल्लाह का आदेश हमेशा एक नियति है।”
एक्ज़प्लेनेशन:
यह आयत (सूरह अल-अहजाब, 33:38) इस बात पर जोर देती है कि पैगंबर मुहम्मद (उन पर शांति) पर अल्लाह द्वारा लगाए गए दायित्वों को पूरा करने का बोझ या दोष नहीं लगाया गया था। यह इस बात की पुष्टि करता है कि यह अल्लाह के उन पैगम्बरों के साथ व्यवहार का स्थापित पैटर्न था जो उससे पहले आए थे। उनके पहले के नबियों को भी अल्लाह द्वारा सौंपे गए अपने दायित्वों और कर्तव्यों को पूरा करने का काम सौंपा गया था। यह अल्लाह के आदेशों में निहित ईश्वरीय आदेश और नियति को रेखांकित करता है, इस बात पर जोर देता है कि वे निश्चित और अपरिहार्य हैं।
SURAH AHZAB AYAT 39 IN ARABIC TEXT
ٱلَّذِينَ يُبَلِّغُونَ رِسَٰلَٰتِ ٱللَّهِ وَيَخۡشَوۡنَهُۥ وَلَا يَخۡشَوۡنَ أَحَدًا إِلَّا ٱللَّهَۗ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ حَسِيبٗا
Translation:
“Those who convey the messages of Allah and fear Him, and fear none but Allah. And Sufficient is Allah as a Reckoner.”
Explanation:
मतलब यह है कि जो लोग अल्लाह के मैसेंजर के माध्यम से उनके रिसालतों को लोगों तक पहुंचाते हैं और उनका डर करते हैं, वह अन्य किसी का डर नहीं करते, क्योंकि उनका भरोसा सिर्फ़ अल्लाह पर है। और यहाँ पर उल्लेख किया गया है कि अल्लाह ही व्यक्तिगत हिसाब लेने के लिए पूरी तरह से पर्याप्त है, उसे और किसी चीज़ की जरूरत नहीं है।
SURAH AHZAB AYAT 40 IN ARABIC TEXT
مَّا كَانَ مُحَمَّدٌ أَبَآ أَحَدٖ مِّن رِّجَالِكُمۡ وَلَٰكِن رَّسُولَ ٱللَّهِ وَخَاتَمَ ٱلنَّبِيِّـۧنَۗ وَكَانَ ٱللَّهُ
بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٗا
Translation :
मुहम्मद (सल्ललाहु अलैहि वसल्लम) कोई भी आदमी का पिता नहीं था, लेकिन वे अल्लाह के रसूल थे और नबीयों का आखिरी भेजा गया। और अल्लाह हर चीज़ को जानता है।
Explanation:
इस आयत में बताया गया है कि मुहम्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम किसी भी व्यक्ति के पिता नहीं थे, वे खुदा के रसूल थे और सभी नबीयों के आखिरी रसूल थे। यह वाक्य उनकी उच्चता और महत्ता को दर्शाता है और यह भी बताता है कि अल्लाह सभी बातों को जानता है, उनके ज्ञान में कुछ भी छुपा नहीं है।
SURAH AHZAB AYAT 41 IN ARABIC TEXT
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ ذِكۡرٗا كَثِيرٗا
Translation :
“Remember Allah very much.”.
स्पष्टीकरण: कुरान की यह आयत, विश्वासियों को संबोधित करते हुए, अल्लाह को बार-बार याद करने के महत्व पर जोर देती है। यह विश्वासियों को अल्लाह की प्रचुर याद में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसमें पूजा, प्रार्थना, प्रशंसा और कृतज्ञता के कार्य शामिल हैं। अल्लाह का नियमित स्मरण व्यक्ति के विश्वास को मजबूत करने, ईश्वर के प्रति सचेत रहने और गहरा आध्यात्मिक संबंध विकसित करने में मदद करता है।
SURAH AHZAB AYAT 42 IN ARABIC TEXT
وَسَبِّحُوهُ بُكۡرَةٗ وَأَصِيلًا
Translation:
“Aur uska stuti karo subah aur shaam ko.”
Explanation:
यह आयत कुरान की सूरह अल-अहज़ाब से है (33:42). इसमें मुमिनों को समझाया जाता है कि वे अल्लाह की महिमा और प्रशंसा सुबह और शाम को करें। “बुकरता और असीला” का अर्थ है “सुबह और दिन के समय”. यह वाक्य दिखाता है कि दिन के विभिन्न समयों में अल्लाह की महिमा और प्रशंसा करना कितना महत्वपूर्ण है।
यह आयत में उपलब्ध विशेषताओं के माध्यम से मुमिनों को समय-समय पर अल्लाह की महिमा करने की अहमियत समझाई जाती है कि वे अपने दैनिक जीवन में अल्लाह के साथ सटीक संबंध बनाए रखने का महत्व समझते हैं, जिससे उन्हें उसकी राह में निरंतरता मिलती है और उन्हें उसकी राह पर चलने के लिए मार्गदर्शन प्राप्त होता है.
SURAH AHZAB AAYAT 43 IN ARABIC TEXT
हुव अल्लाज़ी युसाल्ली अलैकुम व मलाइकातुहू लियुखरिजकुम मिनअज्ज़ुलुमाति इलन्नूरि व कान बिल्मुआमिनीन रahan। подкrollback Translation: “वही वह है जो आप पर दुआएँ करता है और उसके फरिश्ते ताकि वह तुम्हें अंधेरे से निकाल कर रोशनी की ओर ले जाएं। और वह मोमिनों के प्रति दयालु है।”
Explanation: इस आयत में अल्लाह की रहमत और उसके अनंत दया का वर्णन किया गया है। यह बताता है कि अल्लाह और उसके फ़रिश्ते हमेशा हमारे साथ हैं, हमें दुआओं से नवाजते हैं और हमें अंधेरे की स्थिति से निकालकर रोशनी की तरफ़ ले जाते हैं। वह हमेशा हमारे साथ हैं और हमें अपनी अनंत रहमत से निरंतर प्रेरित करते हैं, जो हमें धार्मिकता, न्याय और प्रेम के मार्ग पर ले जाती है।
SURAH AHZAB AYAT 44 IN ARABIC TEXT
تَحِيَّتُهُمۡ يَوۡمَ يَلۡقَوۡنَهُۥ سَلَٰمٞۚ وَأَعَدَّ لَهُمۡ أَجۡرٗا كَرِيمٗا
Translation:
“जिनका सलाम होगा उस दिन जब वे उससे मिलेंगे। और उनके लिए बहुत बड़ा इनाम तैयार किया गया है।”
Explanation:
यह आयत बताती है कि मुमिनों को क़दम-क़दम पर सलाम और इनाम का वादा किया गया है जब वे अपने परमेश्वर से मिलेंगे। यह उनके लिए उत्तम बदला है जो उनके ईमानदारी, नेकी और इबादत में लगे रहे हैं।
SURAH AHZAB AYAT 45 IN ARABIC TEXT
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ إِنَّآ أَرۡسَلۡنَٰكَ شَٰهِدٗا وَمُبَشِّرٗا وَنَذِيرٗا
Translation:
“हे नबी, हमने तुम्हें गवाह, खुशखबरी देने वाला और चेतावनी देने वाला बनाया है।”
Conclusion:
यह आयत कुरान की सूरह अल-अहज़ाब (33:45) से है। इसमें खुदा ने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को तीनों गुणों के साथ भेजा है: 1) शाहिद (गवाह) – जो लोगों के सामने खुदा की सच्चाई का साक्षी है, 2) मुबश्शिर (खुशखबर देने वाला) – जो लोगों को खुशखबरी देता है, और 3) नाज़िर (चेतावनी देने वाला) – जो लोगों को उनके गलत कामों के बारे में चेतावनी देता है। इस आयत में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की महत्वपूर्ण भूमिका का वर्णन किया गया है, जो लोगों को सच्चाई की ओर आमंत्रित करते हैं, उन्हें खुशखबरी देते हैं और उन्हें अपने गलत कामों के बारे में चेतावनी देते हैं।
SURAH AHZAB AYAT 46 IN ARABIC TEXT
وَدَاعِيًا إِلَى ٱللَّهِ بِإِذۡنِهِۦ وَسِرَاجٗا مُّنِيرٗا
“उसकी इजाज़त से अल्लाह की ओर बुलाने वाला और चमकदार चिराग है।”
इस आयत में बताया गया है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह की ओर लोगों को बुलाते हैं और उनको रोशनी प्रदान करते हैं, और यह सब अल्लाह की इजाज़त के बिना नहीं हो सकता। यह आयत दर्शाती है कि वह किस महत्वपूर्ण कार्य में लगते हैं, और वह यह कि लोगों को धार्मिकता, सच्चाई और न्याय की ओर बुलाना और रोशनी के मार्ग पर लाना।
SURAH AHZAB AYAT 47 IN ARABIC TEXT
وَبَشِّرِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ بِأَنَّ لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ فَضۡلٗا كَبِيرٗاوَبَشِّرِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ بِأَنَّ لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ فَضۡلٗا كَبِيرٗا
Translation :
“और मोमिनों को बड़े फ़ज़ल की ख़बर दे कि उनके लिए अल्लाह की तरफ़ से बड़ा फ़ज़ल (इनाम) है।”
Explanation :
यह आयत मोमिनों को उनके परमेश्वर की तरफ से बड़े फ़ज़ल और इनाम की ख़बर सुनाती है। इससे उन्हें यह समझाया जाता है कि उनका परमेश्वर उन पर अत्यधिक अनुग्रह करता है और उन्हें बड़ा इनाम देता है।
SURAH AHZAB AYAT 48 IN ARABIC TEXT
وَلَا تُطِعِ ٱلۡكَٰفِرِينَ وَٱلۡمُنَٰفِقِينَ وَدَعۡ أَذَىٰهُمۡ وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلٗا
Translation :
And do not obey the disbelievers and the hypocrites but not give their hurt but rely on Allah; and sufficient is Allah as Disposers of affairs.
Explanation :
यह आयत मुमिनों को सिखाती है कि वे काफिरों और मुनाफिकों की ताबेदारी न करें, उनकी शान्ति को बिगाड़ने में न हिस्सा लें और अल्लाह पर भरोसा करें। इससे समझाया जाता है कि अल्लाह ही सबसे बड़ा हिफ़ाज़त करने वाला है और उसकी हिफ़ाज़त में भरोसा रखना चाहिए।
SURAH AHZAB AYAT 49 IN ARABIC TEXT
یَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا نَكَحۡتُمُ ٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ ثُمَّ طَلَّقۡتُمُوهُنَّ مِن قَبۡلِ أَن تَمَسُّوهُنَّ فَمَا لَكُمۡ عَلَيۡهِنَّ مِنۡ عِدَّةٖ تَعۡتَدُّونَهَاۖ فَمَتِّعُوهُنَّ وَسَرِّحُوهُنَّ سَرَاحٗا جَمِيلٗا
Translation :
“जो ईमान लाए हो, जब तुम मोमिनात से निकाह करो और फिर उनको तलाक दे दो पर जब तक कि तुम्हें उनसे छू नहीं लिया था, तो तुम पर उनकी कोई आदत नहीं है जिसे तुम अपनी मनमानी से निभाओ, तो उन्हें मज़े से रखो और उन्हें ख़ूबसूरती से छोड़ दो।” Explanation :
ये आयत निकाह के बारे में है और बताती है कि जब किसी आदमी को एक मुमिनात से निकाह करना होता है और उसके बाद उन्हें तलाक देना पड़े पर जब तक कि उनसे सम्बन्ध नहीं बनाए गए होते, तो उनके ऊपर कोई आदत नहीं है जिसे उन्हें पूरा करना हो, इसलिए उन्हें आनंद दो और खूबसूरती से छोड़ दो।
SURAH AHZAB AYAT 50 IN ARABIC TEXT
“ऐ नबी! हमने तुम्हारे लिए वह स्त्रियाँ हलाल कर दी हैं जिनकी महर तुमने दी है और जिनका तुम्हारे यमीनी बंधन के अंतर्गत हालात यह नहीं हैं, जो अल्लाह ने तुम्हें उपहार में दिया है, और तुम्हारे चाचे की बेटियाँ, तुम्हारी चाची की बेटियाँ, तुम्हारे मामे की बेटियाँ, तुम्हारे मौसे की बेटियाँ, जो तुम्हारे साथ हिज्रत कर चुकी हैं, और उस मुमिन औरत को भी, अगर वह अपनी शक्ति को नबी को अर्पित करे, अगर नबी उसके साथ शुद्ध निकाह करना चाहें, तो तुम्हें वह निर्दोष होकर रहने का अधिकार है, बिना मुमिनों के। हमने उन्हें उनकी पत्नियों के साथ फ़र्ज़ किया है और उनके यमीनी बंधनों क्या है यह हमें पता है, ताकि तुम पर बोझ ना हो, और अल्लाह क्षमाशील और दयालु हैं।”
Explanation :
इस आयत में अल्लाह ने नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को बताया है कि वह अपनी आजीविका के लिए उन्हें जो स्त्रियाँ मिली हैं, उनके साथ शादी कर सकते हैं। इसमें शामिल हैं उनकी महर दी हुई स्त्रियाँ और वह स्त्रियाँ जो उनके यमीनी बंधन के अंतर्गत हैं। यह आयत नबी को स्पष्ट कर रही है कि अगर कोई मुस्लिम औरत चाहे तो वह अपनी स्वेच्छा से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए अपना निकाह करवा सकती है। अल्लाह ने इसे हलाल किया है और यह उन्हें अधिकार दिया है बिना किसी मुमिनों की मंजूरी के। इससे साफ है कि नबी के लिए यह अधिकार है कि वह अपनी इच्छा से इन स्त्रियों के साथ शादी करे।
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