महत्वपूर्ण विश्लेषण: आयतुल कुर्सी और सूरह अल-फातिहा
आयतुल कुर्सी
आयतुल कुर्सी “ताक़त की आयत” के नाम से प्रसिद्ध है और क़ुरआन की सबसे प्रशंसित और प्रभावशाली आयतों में से एक है। यह आयत बताती है कि अल्लाह की विशालता और अत्युत्कृष्टता की घोषणा करती है और इसमें उपस्थित होने वाली दिव्यता और गुणों का
आयतुल कुर्सी का अरबी में पाठ :
“اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ الْحَيُّ الْقَيُّومُ ۚ لَا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ ۚ لَّهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ مَن ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِندَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ ۚ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِّنْ عِلْمِهِ إِلَّا بِمَا شَاءَ ۚ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ ۖ وَلَا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا ۚ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْ
समझाने और व्याख्या करने का प्रयास:
“اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ” [ाल्लाह के बिना कोई देवता नहीं है]: इस वाक्य का अर्थ है “अल्लाह, वहाँ कोई देवता नहीं है केवल वही.” यह इस्लाम के शुद्ध मोनोथिज़्म की पुष्टि करता है, जिससे यह साबित होता है कि अल्लाह के सिवाए कोई देवता नहीं है। यह धारणा इस्लाम के आदर्श में मौद्रिक है।
“الْحَيُّ الْقَيُّومُ” जीवंत और संतोषदायक: यह शब्द अभिव्यक्ति इस्लामिक धर्म के अल्लाह को “जीवंत” और “सबका संचालक” कहती है। वह स्वयं संचालन करने वाला, शाश्वत और स्वतंत्र है, जबकि ब्रह्मांड की सभी वस्तुएँ अपने अस्तित्व और पोषण के लिए उनकी ओर निर्भर हैं।
“ल़ा तَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ” (उन्हें न नींद आती है और न उनको नींद आती है): यह हिस्सा स्पष्ट करता है कि अल्लाह को न नींद आती है और न वह सोते हैं। यह मनुष्यों के खिलाफ है, अल्लाह हमेशा जागा रहते हैं और सब समय जागरूक और जागरूक रहते हैं, ज
बकि सारे ब्रह्मांड के लिए वह उनके अस्तित्व और पोषण के लिए उनकी ओर निर्भर हैं।
“لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ” (उनका है सब कुछ जो आकाश में और पृथ्वी में है): इसका मतलब है कि सभी आकाश और पृथ्वी में मौजूद सभी चीजें अल्लाह की हैं। वह पूरे ब्रह्मांड का आपूर्ण मालिक और शासक है।
“मन ذा الَّذी यश्फَعु عındहू इलآ बِإذ्नِه्” : कोई उस (अल्लाह) के यहां दूसरे के लिये अनुमति के बिना दवा नहीं कर सकता: इस हिस्से से स्पष्ट होता है कि कोई अल्लाह के पास किसी अन्य के पक्ष से नहीं जा सकता है उनकी अनुमति के बिना। यह उनकी निरंतर न्याय के उपरांत पूर्ण आधिकार को दर्शाता है।
वह उनके हाथों के बायें और बाएँ और पीछे की ओर का ज्ञान रखते हैं : यह वाक्य बताता है कि अल्लाह का सम्पूर्ण ज्ञान है और उन्हें हर किसी के विचार, क्रियाएँ और उद्देश्य का सही ज्ञान है।
बिल्कुल, मैं सूरह आल-फातिहा का हिंदी में अनुभव देता हूँ:
सूरह आल-फातिहा: इस्लाम की प्रमुख प्रार्थना का सार
सूरह आल-फातिहा या आल-फातिहा सूरा ईस्लाम के पवित्र किताब, कुरान-ए-पाक का पहला सूरा है। यह कुरान के समझने वाले और उन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण मान्यता है जो इस्लाम धर्म का पालन करते हैं। सूरह आल-फातिहा को “उपनिषद” या “प्रार्थना की सूरत” के रूप में भी जाना जाता है, जो कुरान की शुरुआत में है और इसे “इस्लामी प्रार्थना” के रूप में समझा जाता है। यहां हम सूरह आल-फातिहा की मुख्य बातें और महत्व को समझेंगे:
مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ:
इस आयत में कहा गया है, “कर्मफल के दिन का स्वामी है।” यह हमें यह याद दिलाती है कि हमारे सभी क
बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर-रहीम:
सूरह आल-फातिहा की पहली आयत “बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर-रहीम” है जिसका हिंदी में अर्थ होगा “शुरू करने वाला, दयालु और कृपाशील”। यह आयत इस्लामी प्रार्थना की शुरुआत करती है और भगवान की श्रद्धा करते समय उसकी दया और कृपा को याद दिलाती है।
الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِين:
यह आयत कहती है, “सब प्राणियों के रब की प्रशंसा होती है।” यह एक प्रशंसापूर्ण आयत है जो हमें बताती है कि हमें भगवान के लिए प्रशंसा करनी चाहिए, जो सबका पालन-पोषण करते हैं और सबकी चिंता करते हैं।
الرَّحْمَنِ الرَّحِيم:
यह आयत भगवान के द्वारा “रहमान” और “रहीम” के स्वरूप का वर्णन करती है। “रहमान” का अर्थ होता है “दयालु” और “रहीम” का अर्थ होता है “करुणाशील”। इसका संदेश है कि भगवान हमारे प्रति दयालु और करुणाशील हैं और हमें उनके कारुण्य की आवश्यकता है।
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